संदेश

Introduction

                                            प्रस्तावना  दोस्तों, दुनिया में पहचान शब्द की बड़ी कीमत होती हैं, और ये सिर्फ़ दो तरह से मिलती हैं, एक बाप दादा से, दूसरी खुद को कर्मों से। हम क्या हैं? हम क्या थे? हम कहाँ से आये हैं? हम कैसे आये थे? हम यहां क्यों आये थे? हमारा सामाजिक ताना बाना क्यों बदल रहा हैं? कोई हमें बदलने की कोशिश तो नहीं कर रहा हैं? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो आज की बदलती जीवन शैली में (रोटी कपड़ा और मकान) लुप्त होते जा रहे हैं, पर क्या अपने पुरखों को भुलाना आधुनिक जीवन की एकमात्र शर्त हैं? अगर ऐसा होना जरुरी भी हो तो हम व्यक्तिगत रूप से इसके खिलाफ है।                         कुछ इसी तरह के सवाल मुझे और मेरे कुछ ख़ास दोस्तों को कई सालो से दुखी करते आ रहे थे | हम सभी साथी आज के उत्तर प्रदेश पश्चिम के "जिला मेरठ, हापुड़, मुरादाबाद, अमरोहा और संभल" से तालुक रखने वाले थे, बिरादरी से पंजाबी जट, धार्मिक मत हमारे सिख और हिन्दू दोनों का मिश्रण थे | आप कह सकते है कि हम दुनिया में अपने किस्म के अकेले थे | हमारी सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि हिन्दू देशवाली जाटो का रहन सहन,
हाल की पोस्ट